Bhoot Pret ki kahani Hindi me | गांव की रहस्यमयी पहेली

 

यह Bhoot Pret ki kahani Hindi me | गांव की रहस्यमयी पहेली ,रहस्य, साहस और न्याय की मिसाल है। राजस्थान के जयगढ़ नामक गांव में एक अनसुलझी पहेली ने पूरे गांव को भयभीत कर रखा था। कोई भी नहीं जानता था कि इस रहस्य का हल कैसे निकाला जाए।

Bhoot Pret ki kahani Hindi me | गांव की रहस्यमयी पहेली

गांव की पंचायत में सरपंच गोपालजी ने ऐलान किया –”किले में एक भटकती आत्मा का वास है। वह रात के समय गांव में घूमती है और जवान लड़कों को अपने वश में करके किले में ले जाती है। फिर वे कभी वापस नहीं लौटते। इसीलिए हमने निर्णय लिया है कि गांव के सभी युवाओं को किसी और शहर भेज दिया जाए, ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।”

यह सुनकर गांव के बुजुर्ग रामनिवास जी बोले –”सरपंच जी, यह पहेली तो हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, लेकिन आज तक कोई इसे हल नहीं कर पाया!” सरपंच ने गहरी सांस लेते हुए कहा –”हम अपने बच्चों की रक्षा तो जरूर करेंगे। सवाल यह है कि उन्हें इस प्रेतात्मा के आतंक से कैसे बचाया जाए?” तभी वीरेंद्र, जो 25 साल का साहसी युवक था, आगे आया और बोला –

“सरपंच जी, हमें वह पहेली बताइए। हम इसे हल करने की कोशिश करेंगे। अगर यह सुलझ गई, तो शायद प्रेतात्मा किसी को परेशान नहीं करेगी।”सरपंच गंभीर हो गए और बोले –”बेटा, यह बहुत खतरनाक है। अगर तुमने पहेली सुलझाने की कोशिश की, तो तुम्हारी जान को खतरा हो सकता है।”

कुछ लोग अपने बेटों को शहर भेजने के लिए तैयार हो गए, लेकिन कई लोग इस फैसले से असहमत थे। सच्चाई का पता लगाना,वीरेंद्र जब घर पहुंचा तो उसने अपनी मां, कमला देवी से पूछा –”मां, इस पहेली के बारे में तुम जानती हो? कृपया मुझे बताओ!कमला देवी की आंखें नम हो गईं। उन्होंने कहा –”बेटा, इस पहेली के पीछे खतरनाक सच छिपा है। इसी चक्कर में तेरे पिता को भी अपनी जान गंवानी पड़ी थी। अब तू भी इस बारे में मत सोच।”

वीरेंद्र का दिल बैठ गया। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह इस रहस्य को सुलझाकर अपने पिता की मौत का बदला लेगा।अगले दिन वीरेंद्र अपने दोस्त अरुण से मिला और पूरी बात बताई। अरुण बोला –”भाई, मेरे चाचा भी इसी तरह मारे गए थे। हमें इस रहस्य का पता लगाना ही होगा।”

दोनों ने तय किया कि वे गांव से बाहर जाकर अन्य गांवों में पूछताछ करेंगे। बुढ़िया माई से रहस्योद्घाटन दूसरे गांव में उन्हें एक बुजुर्ग महिला, जानकी माई मिलीं। वीरेंद्र ने उनसे पूछा –”माई, कृपया हमें इस पहेली के बारे में बताइए।”जानकी माई ने गहरी सांस लेते हुए कहा –”बेटा, यह कहानी बहुत पुरानी है। यह सिर्फ तुम्हारे गांव की नहीं, बल्कि आसपास के कई गांवों की भी त्रासदी है।”

Bhoot Pret ki kahani Hindi me | गांव की रहस्यमयी पहेली

फिर उन्होंने पूरी कथा सुनाई:-बहुत साल पहले, उस किले में राजा उदितसिंह का शासन था। उनकी रानी चंद्रिका देवी ने एक कन्या को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया दिव्यमती। दुर्भाग्य से, उसके जन्म के समय चंद्रग्रहण था, और नकारात्मक शक्तियों का असर उस बच्ची पर हो गया।

जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, वह तंत्र-मंत्र में रुचि लेने लगी। जब राजा ने उसे शिक्षा के लिए भेजना चाहा, तो उसने क्रोध में अपने माता-पिता की हत्या कर दी और खुद को रानी घोषित कर दिया। रानी दिव्यमती निर्दयी थी। वह गरीबों पर अत्याचार करती और तंत्र-मंत्र के बल पर राज्य के खजाने को एक गुप्त स्थान पर छिपाकर ताले में बंद कर दिया।

राज्य के सेनापति अजयसिंह उससे प्रेम करते थे और विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन रानी ने क्रोध में आकर उन्हें कैद करने का आदेश दिया। परंतु सैनिकों ने आदेश मानने से इंकार कर दिया। तब अजयसिंह ने लालच में आकर खुद ही रानी को मार दिया और राजा बन गया। लेकिन जब उसने खजाना ढूंढा, तो वह कहीं नहीं मिला।

राज्य में भुखमरी फैल गई, और कुछ ही समय में अजयसिंह की भी रहस्यमय मौत हो गई। तब से किले में दिव्यमती की आत्मा भटकने लगी। वह किसी को भी खजाने तक नहीं पहुंचने देती थी। जब लोगों ने किले में जाना बंद कर दिया, तो आत्मा खुद गांव में आने लगी। वह लालच देकर युवा लड़कों को किले में बुलाती और फिर वे कभी वापस नहीं आते।

Bhoot Pret ki kahani Hindi me | गांव की रहस्यमयी पहेली

Bhoot Pret ki kahani Hindi me | गांव की रहस्यमयी पहेली

भूतिया पहेली का अंत

वीरेंद्र ने कहा –”माई, हमें इस आत्मा को मुक्त करना होगा, ताकि यह पहेली खत्म हो जाए!” जानकी माई बोलीं –”बेटा, खजाने को मंत्रों से मुक्त करने के लिए रानी की आत्मा की मुक्ति आवश्यक है। यह काम वही कर सकता है, जिसे धन का लालच न हो और जो इसे जनता के भलाई में लगाए।”

वीरेंद्र और अरुण ने किले में जाने का फैसला किया। वे गुप्त रूप से वहां पहुंचे। वीरेंद्र के पास गंगाजल था और अरुण के पास एक अभिमंत्रित लाल धागा। उन्होंने सबसे पहले धागा किले के दरवाजे पर बांध दिया, ताकि प्रेतात्मा बाहर न जा सके। फिर वीरेंद्र हर जगह गंगाजल छिड़कते हुए आगे बढ़ा।

अचानक, एक काले साए ने उनका रास्ता रोका और डरावनी आवाज में बोला –”अगर अपनी जान की सलामती चाहते हो, तो वापस चले जाओ!”

वीरेंद्र ने साहसपूर्वक जवाब दिया –”हम तुम्हें मुक्ति दिलाने आए हैं। इस खजाने को छोड़कर मुक्त हो जाओ!” जैसे ही वीरेंद्र ने गंगाजल उस काले साए पर छिड़का, प्रेतात्मा तड़पने लगी। कुछ ही क्षणों में वह धुएं में बदलकर गायब हो गई, और खजाने का संदूक दिखाई देने लगा।

वीरेंद्र और अरुण खजाना लेकर गांव लौट आए और सरपंच गोपालजी को सौंप दिया। सरपंच ने गांव की पंचायत बुलाकर घोषणा की –”यह धन अब गांव के विकास में लगाया जाएगा। अब से कोई भी इस रहस्यमयी पहेली से नहीं डरेगा!”इस तरह, वीरेंद्र और अरुण की बहादुरी ने गांव को भय के साए से मुक्त कर दिया। गांव में खुशहाली लौट आई और किले की भूतिया पहेली हमेशा के लिए समाप्त हो गई।

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जय हिंद

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