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Sant Ravidas Ji 5 Stories in Hindi
( Sant Ravidas Ji 5 Stories in Hindi)
संत रविदास जी की 5 सर्वश्रेष्ठ कहानियां का संग्रह
संत रविदास जी -Sant ravidas ji
दोस्तों हम आज पढ़ने वाले हैं कुछ ऐसी कहानी जो हमारे जीवन में कहीं ना कहीं बहुत ही महत्वपूर्ण काम करते हैं
आज हम बात करने वाले हैं संत रविदास जी की वह अनोखी कहानी जो जीवन को एक अलग ऊंचाई तक लेकर जाएंगे और उन्हें जात-पात , ऊंच नीच में मानसिकता को खत्म करने का हमेशा प्रयास किया, उनकी शिक्षा सरलता और प्रेम से भरी थी ।
वह हमेशा लोगों का कल्याण करना चाहते थे अपना जीवन हमेशा जरूरत मंद लोगों की सेवा में लगते थे और लोगों से हमेशा प्रेम से रहते थे
1. गुरु के लिए समर्पण
संत रविदास जी बचपन से ही भक्ति की ओर झुकाव था जब कोई छोटे थे तब उन्होंने एक संत के दर्शन हुए उनके मन में गुरु की भक्ति जागृत हो गई |
लेकिन उनके पास गुरु दक्षिणा देने के लिए कुछ भी नहीं था उनके पास एक मात्र सिक्का था जिसे उन्होंने मेहनत करके कमाया था |
उन्होंने वह सिक्का अपने गुरु को अर्पित कर दिया ,गुरु प्रसन्न हो गए और बोले तुम्हारी भक्ति और श्रद्धा ही सबसे बड़ी दक्षिणा है तुम्हारा नाम युगों तक अमर रहेगा ।
गुरु के इस आशीर्वाद से रविदास जी का मन भक्ति में और दृढ़ हो गया उन्होंने पूरी निष्ठा से भक्ति का मार्ग अपनाया और अपने देश और समाज को नई दिशा दी ।
2. गंगा स्नान से बड़ा भक्ति स्नान (“मन चंगा तो कठौती में गंगा” )
एक बार एक संत रविदास जी के शिष्य गंगा स्नान करने की योजना बना रहे थे ।
लेकिन संत रविदास जी ने कहा कि वह कहीं नहीं जाएंगे उनके कार्य ही उनकी पूजा है शिष्यों ने कहा गंगा स्नान से सारे पाप धूल जाते हैं ।
इस पर संत रविदास जी मुस्कुराए और विनम्र होकर बोले मित्र यदि मन पवित्र है तो कठौती (पानी से बनी हुई पार्टी) में भी गंगा है शिष्यों ने सोचा कि यह कैसे संभव है ,
तभी उन्होंने देखा कि जिस पानी में संत रविदास जी जूते धो रहे थे ,उसमें गंगा का प्रतिबिंब दिखाई देने लगा सभी को यह समझ आ गया की सच्ची पवित्रता बाहर स्नान में नहीं बल्कि मन की शुद्धता में है
3. राजा और जूते की परीक्षा
संत रविदास जी जूता बनाने का कार्य करते थे, एक दिन काशी के राजा को उनके बनाए जूते बहुत पसंद आए ।
राजा ने सोचा कि अगर एक साधारण मोची इतनी सुंदर काम कर सकता है तो उसमें आवश्यक कुछ खास बातें होगी ।
राजा ने जूते पहनकर अनुभव किया कि उनके भीतर एक दिव्य शक्ति जागृत हो रही है और वह आश्चर्यचकित हो गए और रविदास जी के पास जाकर बोले आप केवल एक जूते बनाने वाले नहीं बल्कि एक महान संत है
मैं चाहता हूं कि आप मेरे राजगुरु बने लेकिन संत रविदास जी ने विनम्र होकर काशी नरेश से कहा , मैं ईश्वर की भक्ति करता हूं और अपने कर्म को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करता हूं
मेरा धर्म लोगों की सेवा करना है न कि किसी राज दरबार में स्थान लेना, राजा ने रविदास जी की विनम्रता और भक्ति को प्रणाम किया और उन्हें सच्चा संत माना और मुस्कुराते हुए वहां से चले गए ।
4. चमत्कारी सोने का बर्तन
एक व्यापारी था उन्होंने संत रविदास जी के बारे में बहुत सुना था,उसने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया
उसने सोने का एक सुंदर बर्तन बनवाया उसे संत रविदास जी को भेंट करने के लिए भेजा जब संत रविदास जी के पास वह बर्तन पहुंचा
तो उन्होंने उसे लेने से इनकार कर दिया और कहा संपत्ति और धर्म स्थाई नहीं है, सच्ची पूंजी केवल ईश्वर का नाम है ,व्यापारी ने फिर आग्रह किया लेकिन संत रविदास जी ने अपने पास कुछ भी संचित न करने का संकल्प लिया था ।
अचानक उसे बर्तन से रोशनी निकली और वह अपने आप व्यापारी के पास वापस चला गया ,यह देखकर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह संत रविदास जी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा।
संत रविदास जी ने कहा मित्र धन से सुख नहीं खरीदा जा सकता लेकिन ईश्वर का स्मरण सच्ची शांति प्रदान कर सकता है व्यापारी मुस्कुराया नमन किया और चला गया ।
5. मीरा बाई की भक्ति और संत रविदास जी
मीराबाई संत रविदास जी को अपना गुरु मानती थी जब उनके परिवार को यह पता चला कि वह निम्न जाति के संत की शिष्य बन गई हैं ।
परिवार ने मीरा बाई को बहुत समझाने की कोशिश की परिवार के लोग बोले तुम एक राज परिवार से हो संत रविदास जी एक साधारण व्यक्ति हैं तुम की शिष्या नहीं बन सकती ।
इस पर मीराबाई ने उत्तर दिया सच्ची भक्ति कुल या समाज के बंधनों में नहीं बंधती,संत रविदास जी ने मुझे प्रेम समर्पण और सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाएं वह मेरे लिए गुरु है और रहेंगे ।
संत रविदास जी ने मीराबाई को आशीर्वाद दिया और कहा तुम्हारी भक्ति और प्रेम सच्चे हैं इसलिए ईश्वर सदैव तुम्हारे साथ रहेंगे मीराबाई ने अपने भजन और भक्ति से लोगों को प्रेरित किया और अपने जीवन को कृष्ण भक्ति के लिए समर्पित कर दिया ।
संत रविदास जी की कहानियां हमे ये सिखाती है :-
•सबसे बड़ी शक्ति है, भक्ति में है
•मन की पवित्रता ही असली तीर्थ यात्रा है
•जाति धर्म और समाज के बंधनों से ऊपर उठकर सच्चा प्रेम और भक्ति करनी चाहिए
•सच्ची पूंजी ईश्वर का नाम है न की धन संपत्ति
•अपने कर्म को ईमानदारी और निष्ठा से करना है उसकी पूजा है
तो यह कहानी sant ravidas ji की कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं
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धन्यवाद
जय हिंद