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Sant Ravidas Ji – मन चंगा तो कठौती में गंगा
दोस्तों नमस्कार आप देख रहे हैं आपका पेज जो है Hindistories24.com रविदास जी की कहानी ” मन चंगा तो कठौती में गंगा”, ऐसा क्यों कहा गया और क्यों कहा जाता है इस मुहावरे का अर्थ इस पूरी कहानी में मिलेगा आशा है कि यह आपको यह कहानी पसंद आएगी जो कि संत रविदास जी की है तो मन चंगा तो कटौती में गंगा की कहानी शुरू करते हुए जानते है उनके जीवन के महत्वपूर्ण अध्याय और उनके इतिहास के बारे में जानने की कोशिश करेंगे ।
कहानी की ओर मन चंगा और कटौती में गंगा की कैसी शुरुआत हुई , संत रविदास जी 15 वीं शताब्दी की एक महान संत हुआ करते थे वह एक समाज सुधारक, भक्ति आंदोलन के प्रमुख भी थे , उनका जन्म वाराणसी के एक साधारण से चर्मकार के परिवार में हुआ ,उनका जीवन भले ही खराब परिस्थितियों में हुआ ,लेकिन उनके परिवार उनके विचार और लेकिन उनके विचार और कार्य जो थे वह असाधारण थे ,बचपन से ही भगवान की भक्ति और दूसरों की मदद करने हमेशा तैयार रहते थे, उनका हमेशा सम्मान करते थे |
उनका सरल जीवन और उच्च विचार आज भी लोगों को बहुत हद तक प्रेरित करता है।उनका परिवार जूता बनाने और चमड़े का काम करता था बचपन से ही वह अपने माता-पिता के काम में हाथ काटते और खुश रहते हैं लेकिन उनका मन हमेशा भगवान की भक्ति और जरूरतमंदों की सेवा में लगा रहता है वह चाहते हैं कि अपना जीवन हमेशा जरूरतमंदों की सेवा में लगाए रखें,एक दिन की बात है एक साधु उनके घर आए साधु भूखे थे और उन्होंने भोजन मांगा रविदास जी के पास खुद के खाने के लिए भी कुछ पर्याप्त नहीं था फिर भी उन्होंने अपने हिस्से का सारा भोजन साधु को दे दिया साधु ने उनकी इस सेवा भावना से प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया और कहा तुम सच्चे संत हो तुम्हारे जैसे लोग ही समझ में सच्ची भक्ति का उदाहरण पेश करते हैं।
इस घटना में रविदास जी की सेवा भावना को और भी मजबूत कर दिया रविदास जी का मानना था की सच्ची भक्ति का मार्ग सेवा से शुरू होकर गुजरता है यह हर समय गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते थे और वह इस भेदभाव को बिल्कुल नहीं मानते थे उनका कहना था कि सभी इंसान भगवान की संतान है और इसके लिए सबको समान अधिकार और सम्मान हमेशा मिलना चाहिए एक दिन की बात हैउसमें चमड़े का कुछ कार्य कर रहे थे उसी समय कुछ पंडित और समाज के बड़े लोग उनके पास आए हुए रविदास जी की भक्ति और उनके काम को देखकर उनका मजाक उड़ाने लगे भगवान की भक्ति में क्या कर सकते हैं और क्या ही समझ सकते हैं ।
भगवान की कृपा तुम जैसे लोगों पर नहीं हो सकती है वह कहते है सिर्फ गंगा मां आपकी मन की शुद्धता को दिखती हैं अगर आपका मन साफ है तो हर जगह गंगा मां का अनुभव हो सकता है पंडितों को उनकी बात पर यकीन नहीं हुआ है आगे कहते है इस कटौती में भी गंगा का अनुभव हो सकता है वह यह सुनने के बाद रविदास जी ने कटौती में हाथ डाला और देखते ही देखते कटौती का पानी गंगा बदल गया यह देखकर वहां सभी लोग है एहसास होने लगा उन्होंने रविदास जी से माफ़ी मांगते है और कहते है कभी भी आप किसी को भी कुछ बुरा कहने से पहले दस बार सोचे।
तभी से यह कहावत प्रचलित हो गई “मन चंगा तो कटौती में गंगा” संत रविदास जी ने जीवन के माध्यम से सिखाया सच्ची भक्ति का मन की शुद्धता और सेवा भाव है उनका मानना है कि भगवान को पाने के लिए भगवान का अनुभव किया जा सकता है संत रविदास जी ने समाज मे हमेशा भेदभाव उच्च नीच की भावना को खत्म करने का हमेशा प्रयास किया उन्होंने समान्य भाईचारे का संदेश दिया उनकी रचनाएं जैसे कि
“प्रभु जी तुम चंदन हम पानी” आज भी लोगों के दिल में जिंदा है संत रविदास जी की मन चंगा तो कटौती में गंगा का जीवन यह सीखाता है कि इंसान की पहचान उससे कर्म और विचारों से होती है ,ना कि उसकी जाति है से
Sant ravidas ji कहानी मन चंगा तो कटौती में गंगा इस बात का प्रतीक है मन की शुद्धता से बड़े से बड़ा कार्य संभव हो सकता है उनका जीवन और उनके विचार आज भी हमें सच्चाई समानता और परोपकार का संदेश देते हैं और हमेशा आगे बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं हमे sant ravidas ji की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान और ईश्वर का अनुभव बाहरी दिखावे में नहीं बल्कि मन की शुद्धता और सेवा भावना में है।
हम सभी को अपने जीवन में sant ravidas ji का विचार “मन चंगा तो कटौती में गंगा” की कहानी को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करनी चाहिए तो यह कहानी कैसी लगी हमें कमेंट करके बताएं और ऐसे ही कहानियां पढ़ने के लिए हमें फॉलो कर सकते हैं Hindistories24.com पर या फिर sant ravidas ji की और कहानी हमारे YouTube चैनल @Storiesbygulabgautam पर भी जा सकते हैं
धन्यवाद,
जय हिंद
मस्त कहानी है