Sant Ravidas ji ki kahani

– राजा और संत रविदास जी

दोस्तों बहुत समय पहले की बात है जब संत रविदास जी काशी में रहते थे एक साधारण परिवार से आते थे और जूता बनाने का कार्य करते हैं हालांकि उनका जीवन बहुत सरल और वह सच्चे भक्त थे वह हर समय भगवान की आराधना करते रहते हैं

Sant Ravidas ji ki kahani

-Sant Ravidas ji ki kahani

एक दिन एक राजा को रविदास जी की बड़ी प्रशंसा सुनने को मिली लोगों ने बताया कि एक संत है जो भगवान के इतने प्यारे हैं कि उनके आसपास  दिव्यता दिखाई देती है।

राजा को यह जानकर आश्चर्य हुआ, कि एक ऐसा व्यक्ति जो चमड़े का कार्य करता है उसके पास भगवान कैसे आ सकते हैं,और मोची का काम करनेवाला व्यक्ति संत कैसे हो सकता है राजा को विश्वास नहीं हुआ ।

लेकिन जिज्ञासा बस वह खुद रविदास जी से मिलने चल पड़े जब राजा ने रविदास जी को देखा जूता बनाते हुए देखा,राजा को देखकर और भी आश्चर्य हुआ उसने सोचा जो व्यक्ति चमड़े का कार्य करता है वह संत कैसे हो सकता है राजा ने रविदास जी से कहा तुम जूते बनाने का कार्य करते हो क्या भगवान तुम्हारी सुनते हैं, रविदास जी मुस्कुराए और शांत भाव से बोले राजन, भगवान भक्ति देखते हैं ,उन्होंने उदाहरण दिया जैसे मिट्टी का दिया चाहे किसी भी मिट्टी का बना हो उसमें अगर तेल और बाती हो तो दिया जलता है

इस तरह सच्चे दिल से की गई भक्ति भगवान को जोड़ देती है चाहे वह किसी भी जाति की हो  या न हो और  पैसे हो या न हो, राजा ने उनकी बात सुनकर महसूस किया कि इसमें सच्चाई है। राजा ने संत रविदास जी से क्षमा मांगी और उनसे आशीर्वाद लिया उस दिन के बाद राजा रविदास जी का भक्त बन गए और जीवन में भक्ति,प्रेम,समानता और पालन से की गई भक्ति ही सबसे मूल्यवान होती है

 

 – गंगा जल

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संत रविदास जी एक महान भक्त थे, जो समाज के ऊंच-नीच के भेदभाव को नहीं मानते थे। वे हमेशा कहते थे कि भगवान सबके हैं – जात-पात, ऊंच-नीच इनके लिए कोई मायने नहीं रखता। उनकी भक्ति इतनी गहरी और सच्ची थी, कि लोग दूर-दूर से उनका सत्संग सुनने आते थे।

लेकिन समाज में कुछ पंडित और ब्राह्मण ऐसे में थे। जिन्होंने यह बात पसंद नहीं कि वह एक चर्मकार बनाने वाले व्यक्ति थे, इतना सम्मान कैसे पा सकता है। उन्हें यह लगता कि केवल ब्राह्मण ही ईश्वर की भक्ति कर सकते हैं ,कुछ दिन कुछ पंडितों में संत रविदास जी की परीक्षा लेने की योजना बनाई, उन्होंने कहा अगर तुम्हारी बात सच्ची है तो चलो हमारे साथ गंगा स्नान करना है।

वहां हम देखेंगे कि भगवान तुम्हें स्वीकार करते हैं या नहीं रविदास जी मुस्कुराए और बोले मैं कहीं भी रहूं मेरे लिए हर जगह एक समान है। लेकिन आप सब कह रहे हैं तो मैं भी चलूंगा अगले दिन सब लोग गंगा स्नान करने चले गए ,वही रविदास जी एक किनारे बैठ के हाथ में मिट्टी का पात्र लेकर प्रार्थना की ,की प्रभु आप तो सब जान चुके हैं अगर मेरी भक्ति सच्ची है ,तो मुझे गंगाजल का अनुभव करा दीजिए ।

अचानक चमत्कार हुआ ,उस छोटे से पात्र में  गंगाजल की तरह शीतल और पवित्र जल बहने लगा वहां मौजूद सभी लोग यह देखकर हैरान हो गए।पंडितों को अपनी गलती का एहसास हुआ उन्होंने संत रविदास जी से माफी मांगे और हमेशा आदर करने लगे।

 

– मीरा बाई और संत रविदास जी

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मीरा बाई, भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं। राजस्थान के एक राजघराने की राजकुमारी थी मीरा , भक्त मीरा भगवान श्री कृष्ण को बहुत चाहती थी। परंतु उन्हें समझ नहीं आ रहा था, कैसे उन्हें पाया जाएं और  उनका मन हमेशा भगवान ने ही रमा रहता था, भक्ति का रास्ता चाहिए था,मीराबाई को जब उन्हें संत रविदास जी के बारे में पता चला कि एक ऐसे संत है।

जो संदेश देते हैं उनकी बातें सुनकर मीरा को एक सही रास्ता नजर आने लगा अब मीरा संत रविदास जी के बारे पता किया  उनकी बातों से प्रेरित हुई और मीरा  को लगा ब उन्हें संत रविदास जी ही मार्ग दिखा सकते है ,मीरा उनके चरणों में जाकर कहा ,महाराज मुझे रास्ता दिखाइए। जिससे मेरी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सके, रविदास जी ने मीराबाई को प्रेम साधना करने का मार्ग बताया,उन्होंने कहा न पैसे से ना ही जाति से यह, तो हृदय की प्यार से मिलता है।

जब मन सच्चा हो तो भगवान खुद आकर तुम्हें आशीर्वाद देते हैं,मीराबाई को अपने जीवन की दिशा मिल गई ,और मीरा ने संत रविदास जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया और उनके बताएं रास्ते पर चलते हुए, श्री कृष्णा की भक्ति में लीन हो गई ।

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धन्यवाद,

जय हिंद

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