Kya hua jab ek aurat mili buddha se ? “नदी के किनारे एक स्त्री और बुद्ध”

Kya hua jab ek aurat mili buddha se ? “नदी के किनारे एक स्त्री और बुद्ध”

एक दिन, एक स्त्री बुद्ध के पास आई और बोली, गुरु, मैं बहुत दुखी हूँ, मेरे जीवन में कोई सुख नहीं है। मेरे बच्चों की तबियत हमेशा खराब रहती है, घर में हमेशा परेशानियाँ हैं। मुझे लगता है कि जीवन में कुछ अच्छा होने वाला नहीं है। क्या करूँ ?

बुद्ध ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर उसे एक साधारण लेकिन गहरी समझ देने वाली बात कही:
क्या तुमने कभी नदी के किनारे जाकर पानी पीने के लिए अपने हाथ धोने की कोशिश की है?
स्त्री ने चौंकते हुए जवाब दिया, हाँ, मैंने कई बार ऐसा किया है।Kya hua jab ek aurat mili buddha se ? "नदी के किनारे एक स्त्री और बुद्ध"

बुद्ध ने कहा, ठीक वैसे ही, जब तुम नदी के पानी में हाथ डालती हो, तो पानी थोड़े समय के लिए साफ हो जाता है, लेकिन जैसे ही तुम उसे हटाती हो, वह फिर से गंदा हो जाता है। इसी तरह, तुम्हारे जीवन में भी जो सुख और दुख आते हैं, वे अस्थायी होते हैं। जब तुम खुद को भीतर से शुद्ध करोगी, तब तुम्हारा जीवन भी भीतर से शुद्ध होगा। तुम्हारे मन के विचारों और भावनाओं पर तुम्हारा नियंत्रण होना चाहिए।

बुद्ध की यह बात सुनकर स्त्री को एक नई दृष्टि मिली। उसने समझा कि जीवन के दुख केवल परिस्थितियों से नहीं, बल्कि उसके अपने विचारों और दृष्टिकोण से आते हैं। यदि वह अपने भीतर शांति और संतुलन लाए, तो बाहरी परिस्थितियाँ भी बेहतर हो सकती हैं।

सीख: बुद्ध ने हमें यह सिखाया कि जीवन में सुख और दुख हमेशा आते रहते हैं, लेकिन यह हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है कि हम इन परिस्थितियों को कैसे स्वीकार करते हैं। यदि हम अपने मन को शांत और संतुलित रखते हैं, तो बाहरी कठिनाइयाँ हमें परेशान नहीं कर सकतीं।

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jai hind

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